नित्य कर्म क्या है

वेदों के अनुसार हमें प्रत्येक कर्म को शास्त्रोक्त रीति से ही करना चाहिए। नित्य किए जाने वाला कर्म नित्य कर्म की श्रेणी में आता है एवं नित्य कर्म करने का वैज्ञानिक महत्व भी है। इस श्रेणी में एक प्रातः काल से दूसरे प्रातः काल तक शाश्त्र विधि द्वारा हम जिन जिन कर्मों को कर्म करते रहते हैं – जिनमें ब्रह्म मुहूर्त में जागरण, देव ऋषि एवं गुरुजनों का स्मरण, शौच आदि से निवृत्ति, वेद अभ्यास, यज्ञ, भोजन, अध्ययन, लोक कार्य इत्यादि इस नित्य कर्म में निर्देशित है। आज के समय में वेद अभ्यास, यज्ञ इत्यादि का महत्व बदल चुका है। परन्तु हमें इन नित्य कर्मों का कितना पालन कारण चाहिए यह सभी जानकारियां आपको इस लेख के माध्यम से मिल जाएँगी। इस लेख में आपको सम्पूर्ण जानकारी दी गई है – परन्तु यह ध्यान रहे की इसमें दिए गए सम्पूर्ण कर्मों को कर पाना प्रत्येक मनुष्य के लिए संभव नहीं है। अतः इनमें से कुछ अति आवश्यक कृत्यों को कैसे विधि पूर्वक किया जाये यह आने वाले लेखों में बताया जायेगा।

नित्य कर्म 

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में 3 प्रकार के ऋण होते हैं –  देव ऋण, पितृ ऋण एवं मनुष्य (ऋषि) ऋण। इन सभी ऋणों से मुक्ति के लिए मनुष्य नित्य कर्म करता है।

नित्य कर्म
नित्य कर्म

कुछ नित्यकर्म ऐसे भी होते हैं जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बाध्य रूप से करना ही पड़ता है। जैसे शौचादि कर्म, स्नान, भोजन एवं शयन(सोना)। परंतु यह सभी कर्मी यदि शास्त्रानुसार हो, तो यह हमें हर प्रकार से शुभ फल देता है। जीवन के प्रत्येक कर्म को करने के लिए शास्त्रों में उसकी विधि दी गई है। जिनमें, प्रातः काल हमें कब उठना चाहिए? उठने के बाद हमें सर्वप्रथम क्या करना चाहिए? शौच, दांतों की सफाई (दन्त धावन), स्नान, भोजन शयन आदि इन सभी को किस विधि से करना चाहिए इन सभी के बारे में विस्तृत विवेचना की गई है। आइए जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को नित्य कर्म का पालन किस प्रकार करना चाहिए?

नित्य कर्म में निहित कर्मों की सम्पूर्ण विषय-सूची

  • गृहस्थ के नित्य कर्म का फल-कथन.

प्रातः जागरण के पश्चात स्नान से पूर्व के कृत्य

1- ब्रह्म मुहूर्त में जागरण

  • करावलोकन
  • भूमि-वन्दना
  • मंगल-दर्शन
  • माता-पिता, गुरु एवं ईश्वर का अभिवादन मानसिक शुद्धि का मन्त्र
  • कर्म और उपासना का समुच्चय (तन्मूलक संकल्प)

2- अजपाजप

  • (क) किये हुए अजपा जप के समर्पण का संकल्प
  • (ख) आज किये जाने वाले अजपा जप का संकल्प 

3- प्रातः स्मरणीय श्लोक

  • गणेश स्मरण
  • विष्णु स्मरण
  • शिव स्मरण
  • देवी स्मरण
  • सूर्य स्मरण
  • त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण
  • ऋषि स्मरण
  • प्रकृति स्मरण
  • पुण्य श्लोकों का स्मरण
  • दैनिक कृत्य-सूची-निर्धारण

4- शौचाचार

शौच-विधि

  • (क) मूत्र-शौच-विधि
  • (ख) परिस्थिति-भेद से शौच में भेद.
  • (ग) आभ्यन्तर शौच 

5- आचमन की विधि

6- संकल्प

7- दन्तधावन-विधि 

  • (क) ग्राह्य दातौन
  • (ख) निषिद्ध दातौन 
  • (ग) निषिद्ध काल
  • (घ) निषिद्ध काल में दाँतों के धोने की विधि
  • (ङ) मंजन

8- क्षौर कर्म

  • तैलाभ्यङ्ग-विधि

स्नान

1- स्नान की आवश्यकता

  • स्नान के भेद
  • अशक्तों के लिये स्नान
  • स्नान की विधि
  • जल की सापेक्ष श्रेष्ठता

2- स्नानाङ्ग – तर्पण

  • (क) देव-तर्पण
  • (ख) ऋषि तर्पण
  • (ग) पितृ तर्पण
  • तर्पण के बाद का कृत्य

3- दूसरे के लिये स्नान

  • (क) जीवित व्यक्ति के लिये
  • (ख) मृत व्यक्ति के लिये

4- वस्त्र धारण-विधि

5- आसन

6- शिखा बन्धन

7- यज्ञोपवीत धारण करने की आवश्यकता

  • यज्ञोपवीत कब बदलें ?
  • यज्ञोपवीत-संस्कार एवं धारण की विधि

8- तिलक धारण-प्रकार

भस्मादि-तिलक-विधि,

  • (क) भस्म का अभिमन्त्रण
  • (ख) भस्म लगाने का मन्त्र

9- पवित्री धारण

  • (क) कुशोत्पाटन-विधि
  • (ख) ग्रहण करने योग्य कुश

10- हाथों में तीर्थ

11-जप-विधि

  • (क) स्थान-भेद से जप की श्रेष्ठता का तारतम्य
  • (ख) माला-वन्दना

12- शक्ति मन्त्र की करमाला

संध्या-प्रकरण

1- संध्या का समय

  • संध्या की आवश्यकता
  • संध्या न करने से दोष
  • संध्या-काल की व्याख्या
  • संध्या स्तुति
  • संध्या के लिये पात्र आदि
  • संध्योपासना-विधि
  • आचमन
  • मार्जन-विनियोग- मन्त्र
  • संध्या का संकल्प
  • आचमन
  • प्राणायाम का विनियोग

(क) प्राणायाम के मन्त्र

(ख) प्राणायाम की विधि

(ग) प्राणायाम के बाद आचमन

  • मार्जन
  • मस्तक पर जल छिड़कने के विनियोग और मन्त्र
  • अघमर्पण और आचमन के विनियोग और मन्त्र
  • सूर्यार्घ्य-विधि
  • सूर्योपस्थान

2- गायत्री जप का विधान

  • षडङ्गन्यास
  • प्रातःकाल ब्रह्मरूपा गायत्री माता का ध्यान
  • गायत्री का आवाहन
  • गायत्री देवी का उपस्थान (प्रणाम)

3- गायत्री – शापविमोचन

  1. ब्रह्म-शापविमोचन
  2. वसिष्ठ-शापविमोचन
  3. विश्वामित्र-शापविमोचन
  4. शुक्र-शापविमोचन

4- जप के पूर्व की चौबीस मुद्राएँ.

  • गायत्री मन्त्र का विनियोग 

5- देवमन्त्र जपने की करमाला

6- गायत्री मन्त्र

  • गायत्री मन्त्र का अर्थ

(क) जप के बाद की आठ मुद्राएँ

  • सूर्य-प्रदक्षिणा
  • भगवान्‌ को जपका अर्पण
  • गायत्री देवी का विसर्जन

(ख) गायत्री-कवच

  • संध्योपासनकर्म का समर्पण

(ग) गायत्री-तर्पण

7- मध्याह्न-संध्या

  • सूर्योपस्थान
  • विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान

8- सायं-संध्या

  • सायंकालीन सूर्योपस्थान
  • शिवरूपा गायत्री का ध्यान

8- आशौचमें संध्योपासनकी विधि.

पञ्चमहायज्ञ

1 – ब्रह्मयज्ञ 

2 – तर्पण (पितृयज्ञ ) –

  • तर्पण का फल
  • तर्पण न करने से प्रत्यवाय (पाप)
  • तर्पण के योग्य पात्र
  • तिल-तर्पण का निषेध

तर्पण-प्रयोग-विधि

  1. देव-तर्पण-विधि,
  2. ऋषि तर्पण
  3. दिव्य मनुष्य-तर्पण 
  4. दिव्य पितृ-तर्पण
  5. यम-तर्पण
  6. मनुष्यपितृ तर्पण
  7. द्वितीय गोत्र-तर्पण
  8. पल्यादितर्पण
  9. वस्त्र-निष्पीडन
  10. भीष्मतर्पण
  11. सूर्यको अर्घ्यदान
  12. समर्पण

सूर्य के बारह नमस्कार..

नित्य- दान

3- देव पूजा-प्रकरण ( देवयज्ञ ) –

1- पूजन सम्बन्धी जानने योग्य कुछ आवश्यक बातें

  • पञ्चदेव
  • अनेक देव मूर्ति-पूजा-प्रतिष्ठा-विचार.
  • पाँच उपचार
  • दस उपचार
  • सोलह उपचार
  • फूल तोड़ने का मन्त्र
  • तुलसीदल- चयन
  • तुलसीदल तोड़ने के मन्त्र
  • तुलसीदल-चयन में निषिद्ध समय
  • बिल्वपत्र तोड़ने का मन्त्र
  • बिल्वपत्र तोड़ने का निषिद्ध काल
  • बासी जल, फूलका निषेध
  • सामान्यतया निषिद्ध फूल
  • पुष्पादि चढ़ाने की विधि
  • उतारने की विधि

2- पञ्चदेव-पूजा (आगमोक्त पद्धति)

गृह-मन्दिर में स्थित पञ्चदेव पूजा

भूतोत्सादन-मन्त्र

आसन पवित्र करने का विनियोग एवं मन्त्र.

पूजा की बाहरी तैयारी

पूजा सामग्री को रखने का प्रकार पूजा की भीतरी तैयारी

3- मानस पूजा.

4- पञ्चदेव पूजन विधि

  • गणेश-स्मरण
  • पूजन का संकल्प
  • घण्टा-पूजन
  • शङ्ख-पूजन
  • उदकुम्भकी पूजा
  • विष्णु का ध्यान
  • शिव का ध्यान
  • गणेश का ध्यान
  • सूर्य का ध्यान
  • दुर्गाका ध्यान
  • विष्णु – पञ्चायतन-पूजन

5- सर्वसामान्य देवी-देव- पूजा का विधान

6- शिव-पूजा

7- दुर्गा पूजा विधान

8- नित्यहोम

4- बलिवैश्वदेव ( भूतयज्ञ )

1- बलिवैश्वदेव – विधि

  1. ( १ ) देवयज्ञ

बलिहरण-मण्डल

  1. (२) भूतयज्ञ
  2. (३) पितृयज्ञ
  3. (४) मनुष्ययज्ञ
  4. (५) ब्रह्मयज्ञ

2- पञ्चबलि – विधि

(१) गोबलि (पत्तेपर)

(२) श्वानबलि (पत्तेपर)

(३) काकबलि (पृथ्वीपर)

(४) देवादिबलि (पत्तेपर)

(५) पिपीलिकादिबलि (पत्तेपर)

अग्नि का विसर्जन

5- अतिथि (मनुष्य) – यज्ञ

  • विशेष बातें
  • नित्य श्राद्ध – वार्षिक तिथि पर श्राद्ध के निमित्त संकल्प.

भोजनादि शयनान्तविधि

  • भोजन-विधि
  • पञ्च प्राणाहुति

भोजन के बाद के कृत्य –

  • हलका विश्राम
  • पुराण आदि का अनुशीलन
  • लोकयात्रा और संध्योपासन
  • सांध्यदीप
  • आत्मनिरीक्षण एवं प्रभु स्मरण

विशिष्ट पूजा-प्रकरण

१- स्वस्त्ययन

२- संकल्प

  • ( क ) निष्काम संकल्प
  • (ख) सकाम संकल्प

३- न्यास

  • अङ्गन्यास
  • पञ्चाङ्गन्यास
  • करन्यास

४- गणपति और गौरी की पूजा

५- कलश स्थापन

६- पुण्याहवाचन.

७- अभिषेक

८- षोडशमातृका पूजन.

९- सप्तघृतमातृका पूजन.

१०- आयुष्यमन्त्र

११- नवग्रह – मण्डल पूजन

१२- अधिदेवता और प्रत्यधिदेवताका स्थापन

१३- पञ्चलोकपाल- पूजा

१४- वास्तोष्पति-पूजन

१५- क्षेत्रपालका आवाहन स्थापन

१६- दश दिक्पाल – पूजन.

१७- चतुः षष्टियोगिनी-पूजन

१८-रक्षा-विधान

१९- श्रीशालग्राम-पूजन

२०- श्री महालक्ष्मी पूजन

  • अष्टसिद्धि पूजन
  • अष्टलक्ष्मी पूजन
  • देहली विनायक पूजन
  • श्री महाकाली ( दावात )- पूजन
  • लेखनी-पूजन
  • कुबेर-पूजन
  • तुला तथा मान-पूजन
  • दीपमालिका (दीपक) पूजन
  • प्रधान आरती
  • श्री लक्ष्मी जी की आरती

२१- वैदिक शिव-पूजन

  • नन्दीश्वर-पूजन
  • वीरभद्र-पूजन
  • कार्तिकेय-पूजन
  • कुबेर-पूजन
  • कीर्तिमुख-पूजन
  • सर्प-पूजन
  • शिव-पूजन
  • अभिषेक
  • भगवान गङ्गाधरकी आरती

२२- पार्थिव पूजन

  • अष्टमूर्तियों की पूजा
  • ज्ञातव्य बातें

स्तुति – प्रकरण –

  1. १- श्रीसङ्कष्टनाशनगणेशस्तोत्रम् 
  2. २- श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम्
  3. ३- गणेशपञ्चरत्नम् 
  4. ४- श्रीसत्यनारायणाष्टकम् 
  5. ५- श्रीआदित्यहृदयस्तोत्रम् 
  6. ६- चाक्षुषोपनिषद् (चाक्षुषी विद्या)
  7. ७- श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्
  8. ८- श्रीशिवमहिम्नः स्तोत्रम्
  9. ९- श्रीशिवमानसपूजा
  10. १०- देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
  11. ११- अन्नपूर्णास्तोत्रम् 
  12. १२ – श्रीकनकधारास्तोत्रम्
  13. १३- श्रीसूक्तम्
  14. १४- पुरुषसूक्तम्
  15. १५ – श्रीकृष्णाष्टकम् .
  16. १६- श्रीगङ्गाष्टकम्
  17. १७- श्रीनवग्रहस्तोत्रम्
  18. १८- श्रीकालभैरवाष्टकम्
  19. १९- रामरक्षास्तोत्रम्
  20. २०- गजेन्द्रमोक्ष
  21. २१ – विष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रम् 
  22. २२ – श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा
  23. २३- सप्तश्लोकी गीता
  24. २४- चतुःश्लोकिभागवतम्
  25. २५- एकश्लोकिरामायणम्
  26. २६ – अश्वत्थस्तोत्रम्
  27. २७- तुलसीस्तोत्रम्
  28. २८ – गौको नमस्कार करनेके मन्त्र
  29. २९ – गोग्रास- नैवेद्य-मन्त्र
  30. ३०- गोप्रदक्षिणा – मन्त्र
  31. ३१ – श्रीहनुमानचालीसा

देव-पूजामें विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प

  • १- गणपतिके लिये विहित पत्र-पुष्प 
  • २- देवीके लिये विहित पत्र-पुष्प
  • ३- देवीके लिये विहित प्रतिषिद्ध पत्र-पुष्प
  • ४- शिव-पूजनके लिये विहित पत्र-पुष्प 
  • ५- शिवार्चामें निषिद्ध पत्र-पुष्प
  • ६- विष्णु-पूजनमें विहित पत्र-पुष्प
  • ७- विष्णुके लिये निषिद्ध फूल
  • ८- सूर्यके अर्चनके लिये विहित पत्र-पुष्प
  • ९- सूर्यके लिये निषिद्ध फूल
  • १०- फूलोंके चयनकी कसौटी

संक्षिप्त पुण्याहवाचन नित्यहोम-विधि

ऊपर उपरोक्त दी गई सभी विधियां आप को संक्षिप्त में पंडित लाल बिहारी मिश्र की पुस्तक नित्य कर्म पूजा प्रकाश में प्राप्त हो जाएंगे। इस पुस्तक का प्रकाशन एवं मुद्रण गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा किया गया है। सभी सनातन धर्म के अनुयायियों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। इस पुस्तक में आपके जागने से लेकर रात के सोने तक हर प्रकार के कर्म को शास्त्र विधि द्वारा करने की विधि बताई गई है। 

आप इस पुस्तक को इस लिंक के द्वारा मंगवा सकते हैं।

हमें शास्त्रों में निहित इन सभी कर्मों को नित्य करना चाहिए यही सनातन धर्म है। इस पुस्तक के माध्यम से प्रत्येक वर्ण के स्त्री एवं पुरुष अपने नित्य कर्म को शास्त्र विधि द्वारा कर सकते हैं। नित्य कर्म पुस्तक में वर्णित यह सभी कर्म सामान्य व्यक्तियों के लिए नहीं है। इनमें से कुछ अति महत्वपूर्ण कर्म ही (जो आप अपने दिनचर्या में प्रतिदिन करते हैं) आपके लिए उपयुक्त है। इस पुस्तक को मुख्यतः उन लोगों को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है, जो वर्तमान में वैदिक एवं शास्त्र विधि से पूजा-पाठ एवं कर्मकांड की शिक्षा ले रहे हैं। अतः इन में वर्णित सभी चीजें प्रत्येक मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं है। परंतु हम सभी प्रतिदिन नित्य कर्म तो करते ही हैं, जैसे सुबह उठना, दांतों को साफ करना, शौच करना, स्नान करना, वस्त्र धारण करना, प्रभु का ध्यान करना, प्रातः एवं संध्या में भोजन करना, रात्रि में सोने से लेकर फिर से प्रातः सुबह उठना यह सभी कर्म प्रत्येक व्यक्ति करते हैं। परंतु इन्हीं कर्म को यदि हम शास्त्र विधि से करें तो यह में हर प्रकार से शुभ फल ही देगा। हमें क्या करना चाहिए कैसे करना चाहिए और किन चीजों से हमें दूरी बनानी चाहिए इन सभी पर प्रकाश डाला गया है। अतः हमें इनमें वर्णित कुछ अति महत्वपूर्ण कर्तव्यों का पालन हमें अवश्य करना चाहिए। इन सभी की विधियां आपको पुराण विद्या वेबसाइट के नित्य कर्म वाले सूची खण्ड में प्राप्त हो जाएंगी। आने वाले समय में इन सभी विषयों पर आपको संक्षिप्त लेख भी पढ़ने को मिलेगा।


इति नमस्कारम्

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3 thoughts on “नित्य कर्म क्या है”

  1. बहूत ही सटीक जानकारी दी गई है इस पोस्ट में, धन्यवाद गुरु जी

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