आज 15 अगस्त, केवल एक दिन के परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ झंडा फहराने के समारोह को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। केवल एक दिन भारतीय लोग अपने घरों तथा अपने वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं। कई लोग इस दिन देशभक्ति फिल्में देखते हैं देश भक्ति गीत संगीत सुनते हैं और बस यही तक सिमट कर रह जाता है हमारा स्वतंत्रता दिवस।
स्वतंत्रता के बाद क्या हुआ ब्रिटिश भारत का?
हम सभी लोग यह जानते हैं कि स्वतंत्रता मिलने से पहले संपूर्ण भारतवर्ष में ब्रिटिश हुकूमत थी। वर्तमान भारतवर्ष को उस समय ब्रिटिश भारत अथवा ब्रिटिश इंडिया के नाम से जाना जाता था। परंतु स्वतंत्रता मिलने के पीछे की एक कड़वी सच्चाई भी है।
ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद स्वतंत्र भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया था, जिसमें भारत से निकले एक नए देश पाकिस्तान का जन्म हुआ। विभाजन के पश्चात दोनों देशों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए, और इतिहास में पहली बार बहुत बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ।
यहां संख्या का अनुमान लगाना तकरीबन नामुमकिन है परंतु कुछ आंकड़ों के अनुसार यह संख्या लगभग 1.45 करोड थी। सन 1951 में हुई भारतीय जनगणना के अनुसार विभाजन के बाद लगभग 72 लाख मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए थे और 72 लाख हिंदू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे। हालांकि यह संख्या असलियत में कहीं अधिक थी।
बंटवारे के बाद का दृश्य
ब्रिटिश भारत के धार्मिक आधार पर विभाजन के पश्चात का दृश्य अकल्पनीय था। लाखों की तादाद में दोनों तरफ लोग मर रहे थे। प्रतिदिन हजारों की तादात में हिंदुओं और सिखों की लाशें ट्रेनों में भर भर कर भारत आ रही थी। इतने बड़े पैमाने पर रक्तपात होने के बाद दोनों तरफ दो प्रधानमंत्री बने, भारत में जवाहरलाल नेहरू तथा पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना।
गांधी जी का बंटवारे पर बयान
स्वतंत्रता की बात हो और गांधी जी का जिक्र ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। यह वही समय था जब लाखों की तादाद में हिंदू और सिख भारत आने की तैयारी कर रहे थे तभी गांधीजी का एक बयान आता है – “ अगर बटवारा होगा तो वह मेरी लाश पर होगा…” इतना सुनते ही पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं और सिखों को लगा कि अब तो विभाजन नहीं होगा, क्योंकि बापू ने कहा है। अधिकतर हिंदू और सिख पाकिस्तान में ही रुक जाते हैं और तभी जिन्ना एक प्रत्यक्ष कार्यवाही करता है जिस कारण पाकिस्तानी मुसलमान हिंदुओं को मारना शुरू कर देते हैं, और इस तरह से लाखों हिंदू मारे जाते हैं।
गाँधी जी की रणनीति फेल हो गई, इसका प्रमाण है कि आज हिन्दुस्तान में न जाने ‘कितने पाकिस्तान’ उठ खड़े हो गए हैं। इतना ही नहीं, पूरी दुनिया इन ‘पाकिस्तानों’ से इतना त्रस्त है कि पाकिस्तान और इस्लाम आज वैश्विक आतंक का पर्याय बन गए हैं।
हो सकता है गांधीजी को ऐसा लगा हो की जितना हिंदू मुझे मानते हैं उतना पाकिस्तानी भी मुझे मानते होंगे परंतु गांधीजी जिन्ना के इरादे और उसकी नियति को संपूर्ण तरीके से पहचान ही नहीं पाए।
मुगल काल से पहले और मुगल काल के बाद अभी तक का भारत
मुगल काल से पहले हमारी संस्कृति और सभ्यता का कोई तोड़ ही नहीं था। जिस समय संपूर्ण दुनिया केवल खाने के लिए जी रही थी, उस समय हमारे यहां कला, संस्कृति और विज्ञान तीनों ही अपने चरम पर था। सनातन सभ्यता की सबसे बड़ी पहचान ‘अतिथि देवो भव:’ है, अर्थात अतिथि देवता स्वरूप होता है। परंतु हमें क्या पता था कि जिन्हें हम अतिथि बना रहे हैं वही आने वाले समय में हमारे लिए घातक सिद्ध होंगे।
जिस समय मुगल साम्राज्य अपने चरम पर था उस समय हिंदुओं पर अनगिनत अत्याचार हुए, उसके पश्चात अवसर का लाभ उठाते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने अपने पैर हिंदुस्तान में पसारे। भारत इतने बड़े अत्याचार से उबर ही रहा था तब तक फिर से ब्रिटिश शासन ने भारतीयों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, और जाते-जाते एक ऐसी आग लगा कर गए जो आने वाले सदियों तक जलती रहेगी।
भारत की स्वतंत्रता में हमारे पूर्वजों का योगदान
जब भी स्वतंत्रता सेनानियों की बात आती है तो कुछ नाम अनायास ही मन में गूंजने लगते हैं। परंतु यहां केवल कुछ लोगों का नाम लेना अन्य सभी के प्रति नाइंसाफी भी होगा। परंतु स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत मंगल पांडे से हुई थी जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अंततः सुभाष चंद्र बोस अपने देश वापस नहीं आ पाए थे। यही शर्त थी और इसी शर्त पर हमें मिली थी स्वतंत्रता। एक व्यक्ति जो अपने संपूर्ण जीवन को देश की स्वतंत्रता के नाम कर देता है और अंत में मरने के लिए उसे अपने देश की मिट्टी भी नहीं मिलती है।
उदाहरण देने के लिए यहां हजारों नाम है, परंतु यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अन्याय होगा जो गुमनाम ही अपने देश के लिए मर गए। यह उन लोगों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने अपने देश के लिए जान देने में अपनी शान समझते थे।
एक बात हम सभी को अपने दिल और दिमाग में पूरी तरह से बैठा लेनी चाहिए, की हमें चरखी और लाठी से आजादी नहीं मिली है। हमें आजादी हमारे पूर्वजों के बलिदान से मिली है।
” जय हिंद, वंदे मातरम “
इति नमस्कारम्