आर्यावर्त
आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होता है, तथा आर्यावर्त का शाब्दिक अर्थ है आर्यों का निवास स्थान, यदि इन दोनों को जोड़ दिया जाए तो इसका अर्थ होता है ऐसा स्थान जहां श्रेष्ठतम पुरुष रहते हो। यहां श्रेष्ठ पुरुष से क्या तात्पर्य है? उस समय के अनुसार श्रेष्ठ पुरुष उन्हें ही माना जाता था, जो हर प्रकार की विद्या में माहिर होते थे। आर्यों को वेद धर्म शास्त्र नीति के साथ-साथ उस समय के अत्याधुनिक विज्ञान का विज्ञान था। इसी कारण आर्यों को श्रेष्ठ पुरुष कहा जाता था। इसी के विपरीत ऐसे व्यक्ति जो वेद धर्म शास्त्र इत्यादि के विरुद्ध जीवन यापन करते थे उन्हें अनार्य माना जाता था।
वाल्मीकि रामायण में श्री रामचंद्र जी को कई स्थानों पर आर्य व आर्यपुत्र के नाम से संबोधित किया गया है। विदुर नीति में धार्मिक व्यक्तियों को आर्य माना गया है। चाणक्य नीति में गुणवान व्यक्तियों को आर्य की उपाधि से संबोधित किया गया है। महाभारत में श्रेष्ठ बुद्धि वाले व्यक्तियों तथा गीता में वीर पुरुष को आर्य कहा गया है। महर्षि दयानंद सरस्वती जी के अनुसार जो श्रेष्ठ सभावाला, परोपकार करने वाला, धर्मात्मा, गुणवान और सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति ही आर्य कहा गया है।
आर्यवर्त को लेकर अलग-अलग लेखकों, इतिहासकारों में कई प्रकार की भिन्नता मिलती है। आर्यवर्त से जुड़ी सटीक जानकारियां आप को जल्दी किसी पुस्तक में भी नहीं मिलेगी। क्योंकि वेदों और महाभारत को छोड़कर अन्य जितने भी ग्रंथ हैं जिनमें आर्यावर्त का वर्णन मिलता है, वह भ्रमित करने वाला है। क्योंकि अलग-अलग काल में आर्यों का निवास स्थान फैलता तथा सिकुड़ता गया था। इसी कारण अलग-अलग ग्रंथों में आर्यावर्त की सीमा क्षेत्र का वर्णन अलग-अलग मिलता है। परंतु मूलतः जो प्रारंभ में था वही हमारा आधार है।
- ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को ‘सप्त सिंधु’ प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है।
- जिनमें यह नदियां प्रमुख है: कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा।
- उपनिषद काल में आर्यावर्त की सीमा काशी तथा विदेह (वर्तमान में बिहार का एक जिला) जनपदों तक फैली थी।
- मनुस्मृति में आर्यवर्त सीमा क्षेत्र का वर्णन पूर्वी समुद्र तट से लेकर पश्चिमी समुद्र तट तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंध्याचल तक मिलता है।
- पतंजलि के अनुसार गंगा और यमुना के मध्य में स्थित संपूर्ण क्षेत्र आर्यावर्त है।
- पुराणों के अनुसार संपूर्ण भारतवर्ष तथा भारत वर्ष से जुड़े अन्य भूभाग आर्यावर्त क्षेत्र में आते हैं।
सभी वेद, पुराण, उपनिषद इत्यादि सभी ग्रंथों की भाषा संस्कृत ही है। संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा भी है।
कुछ इतिहासकार आर्यों को विदेशी मानते हैं। परंतु वे कभी यह नहीं बता पाते हैं कि यदि आर्य विदेशी हैं तो वे आए कहां से हैं? क्योंकि उन्हें खुद ही नहीं पता है। क्योंकि खुद के धर्म को सही साबित करने के लिए इन्हें दूसरे के धर्म को गलत साबित करना होता है, इसी के फलस्वरूप इन्होंने समाज में इन सभी भ्रांतियों को फैलाया। लेकिन सच्चाई कभी न कभी सामने आ ही जाती है।
आर्य और द्रविड़
कई स्थानों पर आर्य और द्रविड़ पर विवाद उत्पन्न होता है। परंतु उत्तर एवं दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संताने हैं। हमारे संस्कृति एवं समग्रता को तोड़ने हेतु कुछ इतिहासकारों ने हमारे सनातन संस्कृति को ही बदल कर रख दिया। अमेरिका के हार्वर्ड में विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के पश्चात यह पाया कि संपूर्ण भारतीयों के जिनमें एक प्रकार का अनुवांशिक संबंध है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि आर्य एवं द्रविड़ दोनों अलग अलग नहीं है, यह दोनों एक ही है।
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इससे संबंधित एक शोध में सीसीएमबी अर्थात सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (कोशिका और आणविक जीवविज्ञान केंद्र) के पूर्व निदेशक और इस अध्ययन के सह-लेखक लालजी सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि हमारे शोध में जो नतीजे मिले हैं उसके बाद इतिहास को पुनः लिखने की आवश्यकता पड़ सकती है। उन्होंने बतलाया कि उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच कोई अंतर नहीं रहा है।
वर्तमान भारतीय जनसंख्या वास्तव में प्राचीनकालीन उत्तरी एवं दक्षिणी भारत का मिश्रण है। ऐसा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड एमआईटी तथा सीसीएमबी के विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार पता चला। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि भारतीयों में जो अनुवांशिक बीमारियां होती है वैसी बीमारियां दुनिया के अन्य व्यक्तियों से अलग होती है।
आर्यावर्त से लेकर भारत तक
हमारे देश का संवैधानिक नाम भारत है। इसके साथ-साथ भारत के कई अन्य नाम भी हैं जिनमें हिंदुस्तान और इंडिया नाम भी शामिल है। परंतु भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त है।
हमारे भारत देश के जितने भी नाम है उन सभी नामों के पीछे अपनी अपनी एक कहानी है।
‘सिंधु’ से बना ‘हिंदू’ हमारे भारतवर्ष में सिंधु नाम की एक नदी है। जो विभाजन के बाद और पाकिस्तान का हिस्सा है। इतिहास के अनुसार ईरानी व पारसियों की भाषा में ‘स’ शब्द का उच्चारण ‘ह’ हो जाता है। उदाहरण के तौर पर आप हफ्ता (ईरानी/फारसी/अरबी शब्द) और सप्ताह (हिंदी शब्द) को देखकर समझ सकते हैं।अब ईरानीयों और पारसियों को ‘स’ शब्द के उच्चारण में दिक्कत होती थी। अतः परिणाम स्वरुप वह सिंधु नदी को हिंदू नदी कहते थे। इसी सिंधु नदी के कारण भारत का नाम हिंदुस्तान पड़ा। परंतु इस बात में कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता है। यह केवल एक अनुमान मात्र है।
हिंद महासागर के नाम पर भारतवर्ष का नाम हिंदुस्तान पड़ा और हिमालय से लेकर हिंद महासागर के बीच रहने वाले लोगों को हिंदू कहा जाने लगा।
कई लोगों का मानना है कि ईरानी और अरबों ने भारतवर्ष के लोगों को हिंदू नाम दिया तथा भारतवर्ष को हिंदुस्तान का नाम दिया। परंतु यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि हिंद महासागर के नाम पर भारतवर्ष का नाम हिंदुस्तान पड़ा और हिमालय से लेकर हिंद महासागर के बीच रहने वाले लोगों को हिंदू कहा जाने लगा। क्योंकि यहां पर हिमालय और हिंद महासागर शुरू से ही इसी नाम से प्रचलित है।
हिंदुस्तान का एक और नाम था जंबूद्वीप या फिर यह कहे कि जंबूद्वीप का ही एक हिस्सा हिंदुस्तान है। जंबूद्वीप की भी अपनी एक कहानी है। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।
आज के हमारे मंगल कार्यों में किए जाने वाले संकल्प की शुरुआत में पढ़े जाने वाले मंत्रों में इसका जिक्र होता है।
।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….अमुक…।
इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।
हिंदू और हिंदुस्तान से बना इंडिया अंग्रेजों को हिंदी शब्द बोलना नहीं आता था। वह हिंदी को इंडी बोलते थे, और हिंदुस्तान जितना बड़ा नाम वह एक साथ सही उच्चारण में नहीं बोल पाते थे। इसी कारण वे हिंदी से इंडी और इंडी से इंडिया कहने लगे।
हिंदू शब्द मूल रूप से प्राचीन ग्रंथों में भी विद्यमान है। और यह हिंदू नाम तुर्क, फारसी, अरबों आदि के पहले से ही प्रयोग किया जा रहा है। जिसका एक सटीक उदाहरण हिंदूकुश पर्वत माला का इतिहास है। इस शब्द का प्रमाण कई ग्रंथों में भी मिलता है। अतः हिंदू और हिंदुस्तान नाम हमें किसी विदेशी ने नहीं दिया है। हिंदू नाम पूर्णतः भारतीय है तथा हम सभी को इस पर गर्व होना चाहिए।
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