आप सभी ने देखा होगा की सांड और बैल में एक ही फर्क होता है बैल का बधिया कर दिया जाता है,और सांड को खुला छोड़ दिया जाता है और खुला सांड कितना खतरनाक होता है यह हम सभी लोग जानते हैं।
वही इसके विपरीत जिस सांड का बधिया (नपुंसक) कर दिया जाता है, वह एकदम सीधा-साधा बैल हो जाता है। मतलब आप उससे कितना भी काम करवा लो बस वह सिर झुका कर काम करता ही रहेगा।
बॉलीवुड में हिंदुओं की हालत
अब जहां तक बात है बॉलीवुड की, यहां भी हिंदुओं को टारगेट करके इनका बधियाकरण किया जा रहा है। इसका सबसे सटीक उदाहरण आप अभिषेक बच्चन के रूप में देख सकते हैं। जैसे ही ऐश्वर्या ने अभिषेक बच्चन से शादी किया उसके तुरंत बाद उनको बड़ी फिल्में मिलनी बंद हो गई। हालांकि मुझे गर्व है ऐश्वर्या पर, जो लव जिहाद से बच गई।
ऐसे में अमिताभ बच्चन जो बॉलीवुड के महानायक माने जाते हैं, और जब महानायक के परिवार के साथ ऐसा हो सकता है, तो सुशांत सिंह राजपूत तो अभी उभरता हुआ सितारा था।
सुशांत के बधियाकरण की शुरुआत पीके फिल्म से शुरू हो गई थी। फिल्म हिट थी लेकिन सुशांत को इसमें एक सॉफ्ट नेगेटिव रोल में एक पाकिस्तानी के रूप में उतारा गया था।
इसके बाद हिंदू धर्म गुरुओं की ऐसी गंदी छवि प्रस्तुत करने के कारण इस फिल्म का विरोध भी होना शुरू हुआ। परंतु समय रहते ही सुशांत ने धोनी फिल्म कर ली, जिससे इनके छवि को काफी सुधार मिला।
परंतु बॉलीवुड की खान इंडस्ट्री और उससे जुड़ी तमाम सेकुलर, लेफ़्टिस्ट और इस्लामीकरण का केंद्र बॉलीवुड ने अपनी दूसरी चाल चल दी। इन्होंने सुशांत को केदारनाथ में दोबारा मुस्लिम बना कर भेज दिया, और यहां सेकुलरिज्म के नाम पर एक राजपूत हिंदू एक्टर को मुस्लिम बना दिया गया और एक मुस्लिम एक्टर को ब्राह्मण बना दिया गया।
आप सभी ने एक चीज नोटिस की होगी बॉलीवुड का हमेशा से अजेंडा रहता है की लड़की हिंदू हो और लड़का मुस्लिम और इन दोनों में प्यार हो जाए ! मतलब हर फिल्म में लव जिहाद को सपोर्ट करना इनके लिए जरूरी हो जाता है, और हम सब मजे लेकर इनकी फिल्में देखते भी हैं।
बॉलीवुड ने सुशांत को बहुत फोर्स किया उनका सरनेम राजपूत हटाने के लिए परंतु सुशांत ने ऐसा नहीं किया। लेकिन फिल्म पद्मावती के विरोध में सरनेम हटाने के पीछे का कारण यही था कि एक उभरता हुआ हिंदू सितारा सुशांत ने धोनी फिल्म से खूब नाम कमाया था। इसके विपरीत खानों के अधिकतर फिल्मों का हिंदुओं द्वारा लगातार हो रहे बहिष्कार से खानों ने सुशांत को भी उसी खाई में धकेल दिया।
पीके फिल्म में पाकिस्तानी मुस्लिम बना कर सुशांत के कैरियर समाप्ति की शुरुआत की जा चुकी थी, और बची खुची कसर केदारनाथ में सुशांत को सबसे बड़ा सेकुलर बनाकर इन्होंने पूरी कर ली।
सुशांत इनकी चालों को नहीं समझ सका और गलती कर बैठा। सुशांत ने बिना परिस्थिति को समझे हुए केदारनाथ फिल्म कर ली और इससे आक्रोशित हिंदुओं ने बड़े पैमाने पर सुशांत सिंह का बहिष्कार किया। यह स्वाभाविक भी था। जहां नाम ( केदारनाथ ) महादेव का हो और वहां नायक कोई मुस्लिम हो; यह किसी भी हिंदू को स्वीकार नहीं होगा।
सुशांत बेचारा अनभिज्ञ था, इधर हिंदुओं ने सुशांत को बहिष्कृत करने का मन बनाया और उधर धर्मा प्रोडक्शन, यश राज फिल्म्स, बालाजी, सलमान खान, करण जौहर इत्यादि कई बड़े-बड़े बैनर ने सुशांत को बॉलीवुड में बैन कर दिया।
मतलब सुशांत का फिल्मी कैरियर लगभग लगभग समाप्ति के कगार पर आ गया। अब ना उसको हिंदुओं का सपोर्ट था और ना ही बॉलीवुड का।
जिहादियों ने ऐसा खेल खेला की बेचारे सुशांत को वेब सीरीज या टीवी सीरियल तक ही सीमित होना पड़ गया।
कैसा होगा भविष्य का बॉलीवुड
लेकिन यह जिहादी यही नहीं रुकेंगे यह धीरे-धीरे करके उन सभी उभरते कलाकारों को समाप्त कर देंगे जो बॉलीवुड में हिंदुत्व को आगे बढ़ाते हैं।
ऐसे कई नाम है जिनके उदाहरण मैं आपको दे सकता हूं, जैसे विवेक ओबरॉय, नील नितिन मुकेश, अभिषेक बच्चन और भी बहुत हैं। जिन्होंने इस्लामीकरण का विरोध किया उनके साथ यही हुआ। बॉलीवुड ने उनका बधियाकरण कर दिया।
मुझे अजय देवगन का भी एक उदाहरण याद आ रहा है, उनके साथ भी ध्रुवीकरण का यही खेल खेला जा रहा है। विमल गुटके का प्रचार करने के कारण अजय देवगन को भी काफी क्रिटिसाइज किया जाता है। इन पर जोक्स बनते हैं इन पर मीम बनते हैं और उन सभी कार्यों को किया जाता है जिन से इनका नाम बदनाम किया जा सके।
अभी इनके निशाने पर विद्युत जामवाल भी है। हाल ही में विद्युत की एक फिल्म आई थी कमांडो 3, इसमें दिखाया गया है कि अखाड़े पर पहलवानी करने वाले हिंदू छोटी बच्चियों के स्कर्ट पर कमेंट करते हैं। परंतु अखाड़ा हनुमान जी का मंदिर होता है। अखाड़े पर जाने वाला हर पहलवान हनुमान जी का भक्त होता है और जब तक वह अखाड़े पर रहता है तब तक तो वह महिलाओं के साथ ऐसा घिनौना कार्य कर ही नहीं सकता है। परंतु विद्युत ने फिल्म किया और जाने अनजाने में उसने अपने ही धर्म के लोगों के साथ बहुत गलत कार्य किया। अब आने वाले कुछ ही दिनों में आप देखेंगे कि विद्युत को ज्यादा फिल्में नहीं मिलेंगी।
इसके आलावा भी कई नाम हैं जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट टारगेट में हैं। ऐसे में जब तक हम सोए रहेंगे तब तक इनका धंधा फूलता फलता रहेगा और हमें सेकुलरिज्म के नाम पर केवल और केवल चूतिया बनाया जाएगा।
अभी हाल ही में दो फिल्में आई थी गली ब्वॉय और तुंबाड। यदि आपने तुंबाड फिल्म नहीं देखी है तो जरूर देखिएगा। यहां गली बॉय को फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला था इसके साथ ही इसे ऑस्कर के नॉमिनेट भी किया गया था। जबकि यह फिल्म तुंबाड के आगे कुछ भी नहीं है।
तुंबाड फिल्म की डायरेक्शन हॉलीवुड लेवल की है। इसकी कहानी इसकी स्क्रिप्ट राइटिंग इसकी स्क्रीनिंग इत्यादि सभी चीजें हॉलीवुड लेवल की है। शायद आपको पता नहीं होगा इस फिल्म में जो बारिश का सीन है उसे शूट करने में 6 महीने लगे थे। जब जब बारिश होती थी तब तब इसकी रियल शूटिंग उसी बारिश में होती थी। लगभग 70 प्रतिशत फिल्म रियल लोकेशन और रियल बैकग्राउंड के साथ शूट किया गया है।
परंतु इस फिल्म को पूरी तरीके से दबा दिया गया। ताकि आने वाले समय में कोई ऐसी फिल्म ना बना पाए, और यह अपनी भी घिसीपिटी चुराई हुई कहानियों को बार-बार रीमेक करके बनाते रहे।
अब देखिए यहां इनका एक ही इलाज है, केवल इनकी फिल्मों का बहिष्कार करना। इससे दबे हुए टैलेंट को उभरने में काफी मदद मिलेगी। आने वाले समय में आगे कोई सुशांत सिंह राजपूत दोबारा इस कारण तो नहीं मरेगा।
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