श्री हरी की असीम अनुकम्पा से आज आपके सामने श्रीमद्भागवत गीता के बारे में लिखने जा रहा हूँ। वैसे तो किसी में भी इतना सामर्थ्य नहीं है जो श्रीमद्भागवत गीता का शब्दों के माध्यम से व्याख्या कर सके। परन्तु आज के इस प्रस्तुति में आपको गीता से सम्बंधित वह समस्त जानकारियां देना चाहूँगा जिनसे आपको इस दिव्य ज्ञान को समझने में आसानी हो सके।
आज के इस परिवेश में हमारा मन संभवतः दूषित हो ही चुका है और मन को साफ़ करने का उपाय विज्ञान के पास भी नहीं है। अतः आपके दूषित मन को गीता का यह दिव्य ज्ञान ही बचा सकता है और यह ज्ञान आपको श्रीमद्भागवत गीता से ही प्राप्त हो सकती है। गीता में प्रायः मनुष्यों के सभी प्रकार के दुखों का निवारण दिया गया है। इसमें वर्णित प्रत्येक श्लोक का अर्थ हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकता है और यही कारण है की इस दिव्य पुस्तक में आपको अपने प्रत्येक प्रश्न का सटीक उत्तर मिलेगा।
इस पूरे लेख को बेहद ही सरल भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है। अतः इस लेख को कई भागों में लिखा गया है। लेख के इस प्रथम भाग में आप, श्रीमद्भागवत गीता क्यों कही गई थी इस सन्दर्भ में लिखा गया है।
श्रीमद्भागवत गीता किसने और क्यों कही थी?
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।
अक्सर मैंने देखा है लोगों को श्रीमद्भगवद्गीता समझ ही नहीं आती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता के पात्रों एवं उनकी भूमिकाओं के बारे में पूरी जानकारी ही नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता पुरे महाभारत का केवल एक भाग है जिसमें केवल श्री कृष्ण एवं अर्जुन का संवाद ही है अतः उन्हें भगवान श्री कृष्ण एवं अर्जुन का संवाद ही समझ में आता है। क्योंकि वे महाभारत के सभी पात्रों के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं अतः उन्हें पूरी गीता समझ में नहीं आती है। अतः हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि इस दिव्य ज्ञान को किसने दिया एवं क्यों दिया?
भगवान श्री कृष्ण ने आज से 5000 वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र की भूमि पर अपने परम मित्र तथा भक्त अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। भगवान श्री कृष्ण एवं अर्जुन के मध्य हुई यह वार्ता संपूर्ण विश्व के ज्ञान का एक मुख्य स्रोत है। यह आपके प्रत्येक प्रकार के परिस्थितियों का निवारण करती है। यह वार्ता पाण्डवों एवं कौरवों के मध्य हुए एक महायुद्ध के शुभारंभ के पूर्व हुई थी।
पाण्डु का राज्य अभिषेक तथा पाण्डवों का जन्म
राजा भरत के दो बेटे थे धृतराष्ट्र एवं पाण्डु इन दोनों का जन्म कुरु वंश में हुआ था। इन दोनों भाइयों में धृतराष्ट्र बड़े एवं पाण्डु छोटे भाई थे। धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे अतः उन्हें राजा ना बनाकर उनके छोटे भाई पाण्डु को राज सिंहासन दे दिया गया। धृतराष्ट्र के कुल 100 पुत्र थे जिन्हें कौरव नाम से जाना जाता था एवं छोटे भाई पाण्डु के 5 पुत्र थे जिन्हें पाण्डवों के नाम से जाना जाता था। दुर्योधन एवं दु:शासन क्रमशः धृतराष्ट्र एवं गांधारी के क्रमशः पहले एवं दूसरे पुत्र थे। वहीं पाण्डव क्रमशः युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल एवं सहदेव पाण्डु एवं कुंती के पुत्र थे।
पाण्डु की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई थी अतएव धृतराष्ट्र को कुछ समय के लिए राजा बना दिया गया एवं पाण्डु के पांचों पुत्रों को धृतराष्ट्र के संरक्षण में रखा गया। धृतराष्ट्र एवं पाण्डु के पुत्रों ने गुरु द्रोणाचार्य से सैन्य कला एवं ज्ञान अर्जित किया। इन सब में सबसे परम पूज्य भीष्म पितामह भरत वंश के सर्वोच्च परामर्शदाता थे। भीष्म पितामह धृतराष्ट्र एवं पाण्डु दोनों भाइयों के दादा/ बाबा थे।
लाक्षागृह षडयन्त्र तथा द्रौपदी स्वयंवर
धृतराष्ट्र हमेशा से चाहते थे कि उनका सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन राज्य का उत्तराधिकारी बने यही कारण भी था कि कौरवों में सबसे बड़ा दुर्योधन पाण्डवों से घृणा करता था। अतः धृतराष्ट्र के सहमति से दुर्योधन ने पाण्डवों को मारने का षड्यंत्र भी रचा परंतु पाण्डव अपने ममेरे भाई भगवान श्री कृष्ण एवं चाचा विदुर के संरक्षण में रहने के कारण कई प्राणघातक आक्रमणों के बाद भी बचे रहे। प्रभु श्री कृष्ण पाण्डवों की माता कुंती के भतीजे थे। अतः वे हमेशा पाण्डु पुत्रों की रक्षा करते रहे।
शकुनि के कहने पर दुर्योधन ने बचपन से ही पाण्डवों को मारने के कई प्रयत्न किए मगर वे भगवान की शरण में रहने के कारण बचते रहे। युवा होने पर जब युधिष्ठिर को राज सिंहासन प्राप्त हुआ तो दुर्योधन ने छल से उन्हें एक लाक्ष के बने एक घर में रखकर आग लगा दी। परंतु पाण्डव अपने चाचा विदुर के कारण यहां भी बच गए। इसके पश्चात पाण्डव वन में जाकर रहने लगे इसके पश्चात व्यास जी के कहने पर वे पांचाल राज्य में गए जहां द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था। वहां अर्जुन ने अपने धनुर्विद्या से द्रौपदी को अपने पत्नी के रूप में प्राप्त किया।
पाण्डवों का वनवास
इसके पश्चात दुर्योधन को पता चल गया कि पाण्डव जिंदा है। जहां पाण्डवों की मृत्यु की सूचना पर दुर्योधन को राजा बना दिया गया था, वहीं पाण्डवों के जिंदा होने की सूचना प्राप्त होते ही दुर्योधन ने अपना आपा खो दिया। गृह युद्ध जैसे संकट न हो इस कारण दुर्योधन ने उन्हें खण्डहर जैसा खाण्डव वन आधे राज्य के रूप दे दिया। परंतु एक समय ऐसा भी आया जब दुर्योधन ने बड़ी चतुराई के साथ पाण्डवों को जुआ खेलने के लिए ललकारा।
क्षत्रिय धर्म में किसी भी प्रकार के ललकार से पीछे नहीं हटते हैं अतः यह तो केवल खेल था। दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन एवं अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर पाण्डवों को जुए में हराकर उनसे उनका राज्य एवं उनकी पत्नी तक को जीत लिया। इसके पश्चात वे द्रोपदी का चीर हरण करने को उद्यत हुए परंतु भगवान श्री कृष्ण ने भरी सभा में उनकी लाज बचाई।
इसके पश्चात पाण्डवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला। अज्ञातवास काटने के बाद जब वे अपना राज्य वापस लेने आए तो दुर्योधन ने मना कर दिया। इसके बाद पाण्डवों ने केवल 5 गांव की मांग की दुर्योधन ने उन्हें सुई की नोक पर भी भूमि देने के लिए मना कर दिया। इस पर पाण्डवों को युद्ध करने को विवश होना पड़ा।
श्री कृष्ण का अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता उपदेश
इसके पश्चात जब युद्ध का समय आया तब रणभूमि में अपने ही भाइयों, दादा, मामा, चाचा, सगे संबंधी इत्यादि को देखकर अर्जुन मोह से व्याकुल हो गए और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से युद्ध न करने की इच्छा व्यक्त की। इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का यह अद्भुत ज्ञान दिया। युद्ध के पश्चात पाण्डवों को उनका राज्य मिला। अंत में पांचो पाण्डव एवं द्रौपदी को स्वर्ग में स्थान मिला जहां उन्होंने अपने भाइयों कौरवों को देखा एवं उन्हें प्रभु श्री कृष्ण का भी दर्शन प्राप्त हुआ।
श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने से क्या होता है?
प्रथम समय जब कोई श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करता है?
स्वयं जब मैंने श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन आरम्भ किया था, तो उस समय मुझे लगा की मैं एक अंधे के रूप में इसे पढ़ रहा हूँ। मुझे केवल इतना ही समझ आया की अर्जुन और भगवन श्री कृष्ण के मध्य युद्ध करने न करने को लेकर प्रश्न उत्तर हो रहा था। इसके अतरिक्त बस इतना ही समझ आया की कौन किसका पिता हैं, कौन किसका पुत्र हैं, कौन किसका भाई है? इसके अतिरिक्त आपको कुछ भी नहीं समझ आने वाला है, परन्तु यदि आपको समझ आ रहा है की आगे क्या हो रहा है, तो आप पर सच्चिदानंद स्वामी श्री हरी की कृपा है।
द्वितीय बार अध्ययन करने पर क्या पता चलता है?
जब आप दूसरी बार गीता को पढ़ते हैं तब आपके मन में कई सवाल उत्पन्न होने लगेंगे की उन्होंने ऐसा क्यों किया अथवा उन्होंने वैसा क्यों किया? क्या होता यदि ऐसा न हुआ होता तो? इसके अतिरिक्त अन्य कई सवाल आपके सामने होंगे।
तृतीय बार अध्ययन करते समय आपको क्या समझ आएगा?
तृतीय बार जब आप श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करते हैं तो आपको यह धीरे-धीरे समझ आने लगता है। परन्तु हर एक पाठक को इसका अर्थ उनके अनुसार समझ आएगा। क्योंकि यह एक दिव्य पुस्तक है, अतः यह आपको आपके प्रश्नों, जिज्ञासाओं का उत्तर आपके अनुसार ही मिलेगा। यही कारण है की जितने भी संतों और लेखकों नें गीता का अनुवाद किया उन सब में आपको भेद देखने को मिलेगा। क्योंकि इसमें वर्णित प्रत्येक श्लोक का अर्थ हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग है।
चतुर्थ बार हम सभी पत्रों के भावनाओं को समझने लगते हैं
श्रीमद्भागवत गीता का क्रमशः चतुर्थ बार अध्ययन करते समय आपको पता चलेगा की वहां उपस्थित सभी पत्रों के मन में क्या चल रहा है। युद्ध को लेकर अर्जुन के मन में क्या चल रहा है? दुर्योधन के मन में क्या है अथवा धृतराष्ट्र के मन में क्या चल रहा है?
पञ्चम बार अध्ययन करते समय पूरा कुरुक्षेत्र आपके समक्ष स्थित हो जाएगा
जब आप पञ्चम बार श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करते हैं तो उस समय पूरा कुरुक्षेत्र आपके समक्ष आपके मन में स्थित हो जाता है। आपके मन को एक दृष्टि मिल जाती है, जहां आप देखते हैं कि अर्जुन युद्ध के लिए तैयार खड़े हैं। इसके अलावा भी कई प्रकार की अन्य और कई घटनाएं आपके मन में चल रही होती हैं। आप सोच रहे होते हैं कि आगे क्या होगा और कैसे होगा?
षष्टम बार श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करते हुए
जब आप षष्टम बार श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ते हैं, तो आपको ऐसा कदापि नहीं लगेगा कि आप इसे पढ़ रहे हैं। उस समय आपको लगेगा कि आपको कोई श्रीमद्भागवत गीता सुना रहा है। ऐसा होने के पीछे कारण भी है, यह देववाणी स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से निकली है। अतः यह दिव्य पुस्तक आपको स्वयं ही सुनाई पड़ती है।
सप्तम बार पढ़ते हुए आप अर्जुन बन जाते हैं
कोई भी व्यक्ति जब लगातार श्रीमद्भगवद्गीता का बारंबार अध्ययन करने लगता है, तो वह स्वयं अर्जुन बन जाता है। अतः यदि कोई भी व्यक्ति सप्तम बार गीता का पाठ करता है तो वह स्वयं अर्जुन बन जाता है एवं उसे ऐसा प्रतीत होता है की स्वयं भगवान श्रीकृष्ण उसे गीता का उपदेश दे रहे हैं।
अष्टम बार पढ़ते हुए आपको अनुभव होता है
जब आप अष्टम भाव गीता का अध्ययन करते हैं तब आपको यह अनुभव होने लगता है कि भगवान श्री कृष्ण और कहीं नहीं अपितु आपके अंदर ही समाहित है। आप उन्हें किसी देह धारी के रूप में नहीं अपितु उन्हें तत्व रूप से देखने लगते हैं। आपको धीरे-धीरे यह ज्ञान होने लगता है की प्रभु ब्रह्मांड के प्रत्येक कण में निवास करते हैं एवं उनका तत्व रूप आपके समक्ष आने लगता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में सभी प्रश्नों के उत्तर
यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन श्रीमद भगवत गीता का अध्ययन करें तो उन्हें उनके सभी प्रश्नों के उत्तर मिलने लगते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में उन सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं, जो प्रश्न आप भगवान से पूछना चाहते हैं। आपके मन में चल रहे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर इस दिव्य पुस्तक में बहुत ही सहज रूप में उपलब्ध है। आपके सभी प्रकार के परेशानियों के हल भी आपको इस दिव्य पुस्तक में मिलते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता मात्र एक पुस्तक नहीं, यह अमृत है।
योगी दीप
अतः धरती पर संपूर्ण प्राणियों को कम से कम एक बार श्रीमद्भगवद्गीता को पूरी तरह से पढ़ना एवं समझना चाहिए। इससे आपके मन में चल रही सभी प्रकार की व्याधाएं एवं दुखों का निवारण बहुत ही सरलता पूर्वक दिया गया है।
इति नमस्कारम्